गृहीत मिथ्यात्व
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दूसरे के द्वारा उपदेश सुनकर जीवादि पदार्थों के अस्तित्व एवं स्वरूप में जो अश्रद्धा रूप भाव उत्पन्न होता है उसे गृहीत – मिथ्यात्व अथवा अभिगृहीत मिथ्यात्व कहते हैं ।
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