गृहस्थाचार्य
आदेश और उपदेश के विषय में अव्रती गृहस्थों को जिस प्रकार दूसरे के लिए आम्नाय के अनुसार थोड़ा सा भी उपदेश करना निषिद्ध नहीं है, उसी प्रकार किसी भी कारण से दूसरे के लिए हिंसा का उपदेश देना उचित नहीं है। निश्चय करके वीतरागियों का पूर्वोक्त उपदेश देना भी राग के लिए होता है। इसलिए रागियों को उपदेश देने के लिए अवश्य निषेध किया है। दीक्षाचार्य के द्वारा की गई दीक्षा के समान ही गृहस्थाचार्यों की क्रिया होती है। व्रती गृहस्थों को भी आचार्यों के समान आदेश करना निषिद्ध नहीं ।