गुणित कर्मांशिक
जो जीव पल्य के असंख्यात भाग से हीन 70 कोड़ा – कोड़ी सागरोपम प्रमाण काल तक निगोद में रहा और भव्य जीव के योग्य जघन्य प्रदेश कर्मसंचय पूर्वक सूक्ष्मनिगोद से निकलकर बादर पृथिवी हुआ और अन्तरमुहूर्त काल में निकलकर सात माह में ही उत्पन्न होकर पूर्वकोटि की आयु वाले मनुष्यों में उत्पन्न और विरतियोग त्रसों में हुआ और 8 वर्ष में संयम को प्राप्त करके संयम सहित हो मनुष्य आयु पूर्ण कर पुनः देव, बादर, पृथिवीकायिक व मनुष्यों में अनेक बार उत्पन्न होता हुआ पल्योपम के असंख्यात बार प्रमाण सम्यक्त्व उससे स्वल्पकालिक देशव्रती 8 बार व्रतों को प्राप्त कर तथा 8 ही बार अनन्तानुबंधी का विसंयोजन और 4 बार मोहनीय का उपशम कर शीघ्र ही कर्मों का क्षय करता है वह उत्कृष्ट क्षपित कर्मांशिक होता है।