गर्हा
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गुरू के समक्ष अपने दोष प्रगट करना गर्हा है अथवा प्रमाद रहित होकर अपनी शक्ति के अनुसार कर्मक्षय के लिए पंचपरमेष्ठी के सम्मुख आत्मसाक्षी पूर्वक रागादि भावों का त्याग करना ग कहलाती है।
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