खरभाग, रत्नप्रभा
जिसकी प्रभा चित्रा आदि रत्नों की प्रभा के समान है, वह रत्नप्रभा भूमि है। अधोलोक में सबसे पहले रत्नप्रभा पृथ्वी है। इसके तीन भाग हैंपंकभाग और अब्बहुलभाग। इन तीनों भागों का बाहुल्य क्रमशः सोलह हजार, चौरासी हजार और अस्सी हजार योजन प्रमाण है। यहाँ पर अनेक प्रकार के वर्गों से युक्त महीतल, शिलातल, उपपाद, बालु, शर्करा, शीशा, चाँदी, स्वर्ण और उसके उत्पत्ति स्थान इत्यादि विविध वर्ण वाली धातुएँ हैं। इसलिए इस पृथ्वी का नाम चित्रा पड़ा । इस चित्रा पृथ्वी की मोटाई एक हजार योजन है, इसके नीचे क्रम से चौदह पृथ्वियाँ स्थित हैं। इन पृथ्वियों के नीचे एक पाषाण नाम की सोलहवीं पृथ्वी है जो रत्नशैल के समान है। इसकी मोटाई भी एक हजार योजन है। ये सब पृथ्वियाँ वेत्रासन के समान स्थित हैं।