क्षुधा परीषहजय
क्षुधा अर्थात् भूख की वेदना को समताभाव से सहन करना क्षुधा परीषह जय कहलाता है। जो साधु निर्दोष आहार ग्रहण करते हैं, आहार नहीं मिलने पर या अल्प मात्रा में मिलने पर भूख की वेदना को प्राप्त नहीं होते, असमय में आहार लेने की इच्छा नहीं करते तथा जो आहार के लाभ की अपेक्षा अलाभ को अधिक गुणकारी (अर्थात् कर्म निर्जरा में सहायक) मानते हैं और क्षुधा जनित पीड़ा का चिन्तन नहीं करते उनके क्षुधा परीषह जय होता है।