कृतकृत्य छद्मस्थ
क्षीण कषाय गुणस्थान में मोह रहित तीन घातिया प्रगतियों का काण्डक घात होता है। तहाँ अंत काण्डक का घात होतें याको कृतकृत्य छद्मस्थ कहिए। क्योंकि तिनिका काण्डक घात होने के पश्चात भी कुछ द्रव्य शेष रहता है। इसका काण्डक घात संभव नहीं, इस शेष द्रव्य को समय-समय व्रती, उदयावली को प्राप्त करके एकएक निषेक के क्रम से अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करता है। इस अन्तर्मुहूर्त काल कृतकृत्य छद्मस्थ कहलाता है।