कुलकर
कर्मभूमि के प्रारंभ में आर्य पुरुषों को कुल या कुटुम्ब की भाँति इकट्ठे रहकर जीने का उपदेश देने वाले महापुरुष कुलकर कहलाते हैं। प्रजा के जीवन-यापन का उपाय जानने से ये मनु भी कहलाते हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी के तीसरे और उत्सर्पिणी के दूसरे काल में चौदह कुलकर होते हैं। ये सभी क्षायिक सम्यग्दृष्टी होते हैं। इसमें किसी को जातिस्मरण और किसी को अवधिज्ञान होता है।