कुंदकुंद
दिगम्बर आम्नाय के एक प्रधान आचार्य हुए। इनके पाँच नाम थे – कुन्दकुन्द, वक्रग्रीव, एलाचार्य गृद्धपृच्छ और पद्मनन्दि | आप द्रविड़ देशस्थ कोणुकुण्ड नामक स्थान के रहने वाले थे। आपको सत्संयम के प्रभाव से चारण ऋद्धि उत्पन्न हो गई थी जिसके माध्यम से पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर आकाश में गमन करते हुए आप पूर्व विदेह की पुण्डरीकणी नगरी में गए थे वहाँ सीमन्धर भगवान की वन्दना करके व दिव्य ध्वनि सुनकर आए थे। गिरनार पर्वत पर श्वेताम्बराचार्यों के साथ बड़ा वाद हुआ था, उस समय पाषाण निर्मित सरस्वती की मूर्ति से आपके यह कहलवा दिया था कि दिगम्बर धर्म प्राचीन है। ऐसे अनेक प्रमाणों से आपकी उद्भट विद्वता सिद्ध है आप कलिकाल सर्वज्ञ भी कहलाते थे आपने बारह हजार श्लोक प्रमाण परिकर्म नाम की षट्खंडागम के प्रथम तीन खंडों की व्याख्या की इसके अतिरिक्त 84 प्राभृत की रचना की। जिसमें ‘समय प्राभृत’ आदि कुछ उपलब्ध हैं।