काष्ठकर्म
नाचना, गाना, हँसना और तुरई व वीणा आदि वाद्यों के बजाने रूप क्रियाओं में प्रवृत्त हुए देव, नारकी, तिर्यच और मनुष्यों की काष्ठ से निर्मित प्रतिमाओं को काष्ठकर्म कहते हैं। पट, ( कुड्य भित्ति) एवं फलहिका (काष्ठ आदि का तख्ता) आदि में नाचने आदि में प्रवृत्त देव, नारकी, तिर्यच और मनुष्यों की प्रतिमाओं को चित्रकर्म कहते हैं, ऐसी व्युत्पत्ति है। पोत्त का अर्थ वस्त्र है, उससे की गई प्रतिमाओं का नाम पोत्त कर्म है। कूट ( तृण) शर्करा (बालू) और मृत्तिका आदि के लेप का नाम लेपकर्म है। लयन का अर्थ पर्वत है, उसमें निर्मित प्रतिमाओं का नाम लयनकर्म है। शैल का अर्थ पत्थर है, उसमें निर्मित प्रतिमाओं का नाम शैलकर्म है। गृहों से अभिप्राय जिनगृह आदिकों से है, उनमें की गई प्रतिमाओं का नाम गृहकर्म है। घोड़ा, हाथी, मनुष्य एवं बराह (सूकर ) आदि के स्वरूप से निर्मित गृहकर्म कहलाते हैं यहाँ तात्पर्य है। घर की दीवारों में उनसे अभिन्न रची गई प्रतिमाओं का नाम भित्तिकर्म है। हाथी दाँतों पर की गई प्रतिमाओं का नाम दंतकर्म है। भेड़ सुप्रसिद्ध है, उस पर खोदी गई प्रतिमाओं का नाम भेड़कर्म है। अक्ष ऐसा कहने पर द्यूताक्ष अथवा शकटाक्ष का ग्रहण करना चाहिए (अर्थात् हार-जीत के अभिप्राय से ग्रहण किए गए) जुआ खेलने के अथवा शतरंज और चौरस आदि के पासे अक्ष हैं। वराटक ऐसा कहने पर कापद्रिका (कौड़ियाँ) का ग्रहण करना चाहिए।