काल (अनुयोगद्वार)
किसी क्षेत्र में स्थित पदार्थ की मर्यादा निश्चित करना काल (अनुयोगद्वार) है अथवा जिसमें पदार्थों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन हो उसे काल प्ररूपणा कहते हैं। जैसे अप्रमत्त संयत गुणस्थान के काल से प्रमत्त संयत गुणस्थान का काल दुगुना है। 1. उपशम श्रेणी सम्बन्धी सभी गुणस्थानों के काल से अकेले प्रमत्त संयत गुणस्थान का काल ही संख्यातगुणा है। 2. एक अपूर्वकरण उपशामक जीव, अनिवृत्ति उपशामक, सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामक और उपशान्त कषाय उपशामक होकर फिर भी सूक्ष्म साम्परायिक उपशामक और अनिवृत्ति करण उपशामक होकर अपूर्वकरण उपशामक हो गया। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त्तकाल प्रमाण जघन्य अन्तर लब्ध हुआ। ये अनिवृत्तिकरण से लगाकर पुनः अपूर्वकरण उपशामक होने के पूर्व तक के पाँचों ही गुणस्थानों के कालों को एकत्र करने पर ही वह काल अन्तर्मुहूर्त्त ही होता है, इसलिए जघन्य अन्तर भी अन्तर्मुहूर्त्त ही होता है।