कार्मण काययोग
कर्मों के समूह को अथवा कार्मण नामकर्म के उदय से उत्पन्न होने वाले काय को कार्मणकाय कहते हैं और उसके द्वारा होने वाले योग को कार्मण काययोग कहते हैं। यह योग विग्रहगति में अथवा केवलिसमुद्घात में दो अथवा तीन समय तक होता है। तीहिं (कार्मण शरीर ) कार्मण स्कन्ध सहित वर्तमान जो संप्रयोग कहिये आत्मा के कर्म ग्रहण शक्ति धरै प्रदेशनि का चंचलपना सो कार्मण काय योग है, सो विग्रहगति विषै एक, दो अथवा तीन समय काल मात्र है, अर केवली समुद्घात विषै प्रतरादिक अर लोकपूरण इन तीन समयनि विषै है, और समय विषै कार्मणयोग न हो है । विग्रहगति को प्राप्त चारों गतियों के जीवों के तथा प्रतर और लोकपूरण समुद्घात को प्राप्त केवली जिनके कार्मण काययोग होता है। कार्मण काययोग ऐकेन्द्रिय जीवों से लेकर सयोग केवली तक होता है । विग्रहगति में योग होता है।