कारण परमात्मा
शुद्ध स्वरूप अर्थात् सिद्ध भगवान तो कार्य परमात्मा हैं और कारणभूत जो जीव स्वभाव है वह कारण परमात्मा है। आशय यह कि मुक्त और संसारी सब में जो स्वभावभूत आत्मा है वह कारण परमात्मा है और शुद्ध स्वरूप में स्थित अर्हन्त सिद्ध परमात्मा ही कार्य परमात्मा है। यह आत्मा अपने चित्तस्वरूप को ही चिदानंदभय रूप से आराधन करके परमात्मा हो जाता है जैसे बांस का वृक्ष अपने को अपने से ही रगड़कर अग्नि रूप हो जाता है अथवा यह आत्मा अपने से भिन्न अर्हन्त सिद्ध रूप परमात्मा की उपासना करके उन्हीं के समान परमात्मा हो जाता है जैसे दीपक से भिन्न अस्तित्व रखने वाली बत्ती भी दीपक की उपासना करके अर्थात् उसका सामीप्य प्राप्त करके दीपक स्वरूप हो जाती है यही कारण कार्य परमात्मा को समझने के उदाहरण है।