कायोत्सर्ग
परिमित काल के लिए शरीर से ममत्व का त्याग करना कायोत्सर्ग है अथवा शरीर आदि पर – पदार्थों में ममत्व छोड़कर आत्म-ध्यान में लीन होना कायोत्सर्ग है अथवा दैवसिक आदि निश्चित क्रियाओं में यथोक्त काल पर्यन्त उत्तम क्षमा आदि जिनगुणों की भावना सहित देह में ममत्व को छोड़ना कायोत्सर्ग है इसे खड़े होकर व बैठकर दोनों प्रकार से होता है। कायोत्सर्ग के चार भेद कहे हैंउत्थितोत्थित, उत्थित निविष्ट, उपविष्टोत्थित और उपविष्टोपविष्ट। जो खड़े होकर धर्म और शुक्ल ध्यान में लीन होते हैं उनका कायोत्सर्ग उत्थितोत्थित है जो खड़े होकर भी आर्त और रौद्रध्यान से युक्त होते हैं उनका कायोत्सर्ग उत्थित-निविष्ट है जो मुनि बैठकर ही धर्म और शुक्ल ध्यान में लीन होते हैं उनका कायोत्सर्ग उपविष्टोत्थित है जो मुनि बैठकर भी अशुभ ध्यान करते हैं उनका कायोत्सर्ग उपविष्टोपविष्ट है। मन से शरीर में ममत्व-भाव का त्याग करना मानस कायोत्सर्ग है। मैं शरीर में ममत्व का त्याग करता हूँ ऐसा वचन से कहना वचनकृत कायोत्सर्ग है तथा बाहु नीचे छोड़कर चार अंगुल मात्र अन्तर दोनों पैरों में रखकर निश्चल खड़े होना यह शरीरकृत कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग के समय प्राण वायु के साथ णमोकार मन्त्र की गाथा का चिन्तन करना चाहिए। इस प्रकार सत्ताइस श्वांसोच्छवास में नौ बार णमोकार मन्त्र की गाथा का प्रयोग करने वाले के चिरसंचित महान् कर्म राशि नष्ट हो जाती है उत्कृष्ट कायोत्सर्ग एक वर्ष का और जघन्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है शेष कायोत्सर्ग दिन-रात सम्बन्धी प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, स्वाध्याय, वंदना आदि के अवसर पर यथोक्त श्वांसोच्छवास काल पर्यन्त होते हैं ।