कायक्लेश
शरीर को सुख मिले ऐसी भावना को त्यागना कायक्लेश है। अतः आतापन योग, वृक्षमूल में निवास, निरावरण शयन और अनेक प्रकार के प्रतिमा योग इत्यादि करना कायक्लेश है। देह-दुख को सहन करने के लिए, सुख विषयक आसक्ति को कम करने के लिए और धर्म की प्रभावना के लिए किया जाता है जिसने शीत आदि की बाधा और उपवासादि की बाधा को सहने का अभ्यास नहीं किया वह सल्लेखना के समय विचलित हो जाता है और सके ध्यान नहीं बन पाता है। कायक्लेश ता अनेक उपायों से सिद्ध होता है। जिसमें छह उपाय प्रमुख हैं। अयन (सूर्य की गति के अनुरूप गमन), आसन (वीरासन, दण्डासन आदि आसन), शयन ( एक पार्श्व आदि से सोना), स्थान ( कायोत्सर्ग में स्थित होना) अवग्रह (थूकने, खांसने आदि बाधाओं को जीतना) और योग ग्रीष्म काल में पर्वत के शिखर पर सूर्य के सम्मुख खड़े होना रूप आतापन योग, वर्षा ऋतु में वृक्ष के नीचे बैठने रूप वृक्षमूल योग और शीत काल में चौराहे पर नदी किनारे ध्यान लगाने रूप शीत योग या अभ्रावकाश योग है। यह कायक्लेश तप मुनियों के लिए है श्रावक को वीरचर्या अर्थात् स्वयं भ्रामरी वृत्ति से भोजन करने, प्रतिमा योग, आतापन योग आदि धारण करने तथा सिद्धांत शास्त्रों के अध्ययन का अधिकार नहीं है। कायक्लेश और परीषहजय में इतना ही अन्तर है कि परिषह अपने आप प्राप्त हुआ होता है और स्वयं किया गया कायक्लेश है।