काय शुद्धि
1. जो समस्त आवरण और आभरणों से रहित, श्रंगार से रहित, यथाजात निर्विकार और सर्वत्र यत्नाचार पूर्वक / सावधानी पूर्वक प्रवृत्ति रूप है वह काय शुद्धि है। यह मूर्तिमान प्रशमसुख की तरह है। इसके होने पर न तो दूसरे को अपने से भय होता है और न अपने को दूसरे से संयमित जीवन जीने वाले मुनिराजों को होने वाली आठ शुद्धियों में से एक है। 2. सर्व ओर से संपुटित अर्थात् विनीत अंग रखने वाले दाता के काय शुद्धि होती है।