कल्की
साधुजनों पर अत्याचार करने वाले धर्मद्रोही राजा को कल्की कहते हैं। अवसर्पिणी के पंचमकाल में प्रत्येक एक हजार वर्ष के बाद एक- एक कल्की का जन्म होता है तथा प्रत्येक पाँच सौ वर्ष के बाद एक-एक उपकल्की जन्म लेता है। इस प्रकार पूरे पंचमकाल में इक्कीस कल्की और उतने ही उपकल्की धर्मात्माओं पर अत्याचार करने के कारण प्रथम नरक जाते हैं। प्रत्येक कल्की के समय में साधु संघ अल्प रह जाता है। अंतिम कल्की के समय मात्र एक साधु को अवधिज्ञान प्राप्त होता है तथा एक साधु एक आर्यिका, एक श्रावक और एक श्राविका शेष रहते हैं, जो समाधिमरण पूर्वक स्वर्ग जाते हैं। इसके उपरांत धर्म-कर्म से शून्य दुषमा- दुषमा नामक छठा काल प्रारंभ होता है।