कर्म चेतना
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ऐसा अनुभव करना कि इसे मैं करता हूँ’ यह कर्म चेतना है। वास्तव में, जीव का स्वभाव मात्र जानना देखना है, पर कर्म से युक्त जीव ‘पर’ वस्तुओं में करने- धरने रूप विकल्प करता है यही कर्म-चेतना है ।
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