एकरात्रि प्रतिमा
तीन उपवास करने के अन्नतर चौथी रात्रि में ग्राम नगर आदि के बाह्यप्रदेश में अथवा श्मशान में पूर्वदिशा या उत्तरदिशा अथवा चैत्य (प्रतिमा) के सम्मुख मुख करके दोनों चरणों में चार अंगुल प्रमाण का अन्तर रखकर नासिका के अग्रभाग पर वह यति अपनी दृष्टि निश्चल रखता है। शरीर का ममत्व छोड़ देता है अर्थात् कायोत्सर्ग करता हुआ मन को एकाग्र करता है। देव, मनुष्य, तिर्यंच व अचेतन इन द्वारा किया हुआ चार प्रकार का उपसर्ग सहन करता है वह मुनि सूर्योदय होने तक वहीं पर स्थित रहता है। न आगे जाता है और न गिरता है। यह एकरात्रिप्रतिमा कुशल है ।