एकत्व विक्रिया
अणिमा, महिमा आदि आठ गुणों के ऐश्वर्य के संबंध से एक अनेक छोटा बड़ा आदि नाना प्रकार का शरीर करना विक्रिया है वह भी विक्रिया दो प्रकार की है एकत्व और पृथक्त्व वहाँ अपने शरीर को सिंह, व्याघ्र, हिरण, हंस आदि रूप बना लेना एकत्व विक्रिया है और शरीर भिन्न मकान, मण्डप आदि देना पृथक्त्व विक्रिया है। भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी और 16 स्वर्गों के देवों के एकत्व और पृथक्त्व नाना प्रकार की विक्रिया होती है।ऊपर ग्रैवेयिक आदि सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त के देवों के प्रशस्त एकत्वविक्रिया की होती है। छटे नरक तक नारकियों के त्रिशूल, तलवार, मुण्डक चक्र आदि रूप से जो भी विक्रिया होती है वह एकत्वविक्रिया ही है न कि पृथक्त्व विक्रिया। सातवें नरक में गाय बराबर कीड़े लहू आदि रूप से एकत्व विक्रिया ही होती है। आयुध रूप से पृथक्त्व विक्रिया नहीं होती। तिर्यंचों में मयूर आदि के कुमार आदि भावरूप एकत्व विक्रिया ही होती है पृथक्त्व विक्रिया नहीं होती। मनुष्यों के तप और विद्या की प्रधानता से एकत्व और पृथक्त्व दोनों विक्रिया होती हैं।