उपचार
अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म को अन्य में समारोप करके कहना- यह उपचार है, इसे असद्भूत व्यवहार – नय भी कहते हैं। मुख्य का अभाव होने पर प्रयोजन या निमित्त के वश से उपचार किया जाता है। अविनाभावी सम्बन्धों में ही परस्पर उपचार किया जाता है। प्रयोजनवश अनेकों प्रकार का उपचार देखा जाता है जैसे कारण में कार्य का उपचार, कार्य में कारण का उपचार, अल्प में पूर्ण का उपचार, आधार में आधेय का उपचार आदि । दुःख के कारण होने से हिंसादि दुःख ही है ऐसा कहना – यह कारण में कार्य का उपचार है अथवा अन्न प्राण धारण का कारण है इसलिए अन्न ही प्राण है ऐसा कहना यह भी कारण में कार्य का उपचार है। घट रूप से परिणत ज्ञान को घट (घड़ा) कहना अथवा उपयोग को इन्द्रिय के निमित्त से इन्द्रिय कहना यह कार्य में कारण का उपचार है। सामायिक व्रत में महाव्रतपना मानना या आर्यिका को महाव्रत मानना यह अल्प में पूर्ण का उपचार है। खेत में मचान पर बैठकर किसान चिल्लाते हैं पर कहा जाता है कि मचान चिल्लाते हैं- यह आधार का आधेय में उपचार है। गाड़ी वाले को गाड़ी कहकर पुकारा या लाठी वाले को लाठी कहकर बुलाया- यह तद्वान में तत् का उपचार है।