उद्यापन
उपवास के पश्चात् उद्यापन का विधान है। उपवासों को विधि पूर्वक पूरा करने पर फल की वांछा करने वालों को उद्यापन भी अवश्य करना चाहिए। व्रत की मर्यादा पूर्ण हो जाने स्वशक्ति के अनुसार उद्यापन करें। यदि किसी की विधिपूर्वक उद्यापन करने की शक्ति न हो तो दुगने काल तक दुगने उपवास विधि पूर्वक करना चाहिए। यदि इस प्रकार न किया जाये तो व्रत विधि कैसे पूर्ण हो । खूब ऊँचे-ऊँचे जिनमंदिर बनवाना, उसमें बड़े समारोह पूर्वक प्रतिष्ठा कराकर जिनप्रतिमा विराजमान करना, पश्चात चार प्रकार के संघ के साथ प्रभावनापूर्वक महाभिषेक कर महापूजन करें। पश्चात घण्टा, झालर, चमर, छत्र, सिंहासन, चंदोवा, झारी, भृंगारी, आरती आदि अनेक प्रकार धर्मोंपकरण शक्ति के अनुसार भक्ति पूर्वक देवें। आचार्य आदि महापुरुषों को धर्मवृद्धि तथा ज्ञानवृद्धि हेतु शास्त्र प्रदान करें और उत्तमोत्तम बाजे, गीत और नृत्य आदि के आयोजन से मन्दिर में महान उत्सव करें। चतुर्विधसंघ को विशिष्ट सम्मान के साथ भक्तिपूर्वक बुलाकर अत्यधिक प्रमोद से आहारादिक चार प्रकार का दान देवें। भगवान जिनेन्द्र के शासन का महात्म्य प्रगट कर खूब प्रभावना करें। इस प्रकार अपनी शक्ति के अनुसार उद्यापन कर व्रत का विसर्जन करें।