उदासीन निमित्त
जो अन्य द्रव्य को प्रेरणा किए बिना उसके कार्य में सहायक मात्र होता है वह उदासीन निमित्त कहलाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह बिल्कुल व्यर्थ ही है क्योंकि उसके बिना कार्य की निष्पत्ति असम्भव होने से उसको अविनाभावी सहायक माना गया है। जैसे- सिद्ध भगवान स्वयं उदासीन रहते हुए भी सिद्धों के गुणानुराग रूप से परिणत भव्यों की सिद्ध गति में सहकारी कारण होते हैं या धर्म द्रव्य स्वभाव से ही गति परिणत जीवों को उदासीन रहते हुए भी गति में सहकारी कारण हो जाता है।