उत्सर्ग तप
कायादि पर द्रव्यों में स्थिर भाव छोड़कर जो आत्मा को निर्विकल्प रूप से ध्याता है, उसे व्युत्सर्ग कहते हैं। बाहर में क्षेत्र वास्तु आदि का और अभ्यन्तर में कषाय आदि का अथवा नियत व अनियत काल के लिए शरीर का त्याग करना व्युत्सर्ग तप हैं। परिमित काल के लिए शरीर से ममत्व का त्याग करना उत्सर्ग है । मन से शरीर में अभेद बुद्धि की निवृत्ति मानस कायोत्सर्ग है। मैं शरीर का त्याग करता हूँ। ऐसा वचनोपचार करना वचन कृत कायोत्सर्ग है। बाहु नीचे छोड़कर चार अंगुल मात्र अन्तर दोनों बाहों में रखकर निश्चल खड़े रहना, वह शरीर के द्वारा कायोत्सर्ग है।