इन्द्रभूति गौतम
तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर। ये ब्राह्मणों के गौतम गोत्र में उत्पन्न हुए। ये वेद-वेदांग के ज्ञाता थे। इन्द्र अवधिज्ञान से यह जानकर कि इन्द्रभूति गौतम के आने पर ही भगवान महावीर की दिव्यध्वनि प्रारंभ हो सकती है इन्हें किसी प्रकार भगवान महावीर के निकट लाया । भगवान का सानिध्य पाते ही इन्हें आत्म- बोध हो गया और ये अपने पाँच सौ शिष्यों सहित तीर्थंकर महावीर के शिष्य हो गए । संयम धारण करते ही इन्हें समस्त ऋद्धियाँ प्राप्त हो गईं और दिव्य ध्वनि सुनकर इन्होंने द्वादशांग की रचना की। जिस दिन प्रातः काल भगवान महावीर का निर्वाण हुआ उसी दिन संध्याकाल इन्हें केवलज्ञान हुआ । केवलज्ञान होने के बारह वर्ष बाद इन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ ।