आराधना
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चारों का यथायोग्य रीति से उद्योतन करना, इन्हें दृढ़तापूर्वक धारण करना, इनके मंद पड़ जाने पर पुनः– पुनः जागृत करना और इनका जीवन भर पालन करना आराधना कहलाती है। दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चार को चतुर्विध आराधना कहा गया है अथवा संक्षेप में आराधना के दो भेद हैं सम्यक्त्वाराधना और चारित्राराधना । उत्कृष्ट सम्यक्त्व की आराधना अयोग केवली के होती है मध्यम सम्यग्दर्शन की आराधना बाकी के सम्यग्दृष्टि जीवों के होती है परन्तु परिषहों से जिसका मन उद्विग्न हुआ है ऐसे अविरत सम्यग्दृष्टि को जघन्य आराधना होती है।