आनुपूर्वी
पूर्वानुपूर्वी, पश्चातानुपूर्वी और यथातथानुपूर्वी या यत्रतत्रानुपूर्वी इस प्रकार आनुपूर्वी के तीन भेद हैं— जो पदार्थ जिस क्रम से सूत्रकार के द्वारा स्थापित किया गया हो अथवा जो पदार्थ जिस क्रम से उत्पन्न हुआ हो उसकी उसी क्रम से गणना करना पूर्वानुपूर्वी है अथवा जो वस्तु का विवेचन मूल से परिपाटी द्वारा किया जाता है उसे पूर्वानुपूर्वी कहते हैं जैसे- ऋषभनाथ की वन्दना करता हूँ, अजितनाथ की वन्दना करता हूँ इत्यादि । इस प्रकार क्रम से वन्दना करना । जो वस्तु का विवेचन विलोम क्रम से किया जाता है, उसे पश्चातानुपूर्वी कहते हैं। जैसे- मैं महावीर स्वामी को नमस्कार करता हूँ, उसके बाद पार्श्वनाथ को, नेमिनाथ को इत्यादि क्रम शेष जिनेन्द्रों को भी नमस्कार करता हूँ, यह पश्चातानुपूर्वी है। जो कथन अनुलोम और विलोम क्रम के बिना जहाँ कहीं से भी किया जाता है, उसे यथातथानुपूर्वी या यत्रतत्रानुपूर्वी कहते हैं। जैसे हरिवंश के प्रदीप और माता शिवा देवी के लाल ऐसे नेमिनाथ भगवान जयवन्त हों, आदि ।