आत्मवाद
एक ही महात्मा है सोई पुरुष है, देव है, सर्व विषै व्यापक है, सर्वांगपने निगूढ़ कहए अगम्य है, चेतना सहित हैं, निर्गुण है, परम उत्कृष्ट है, ऐसे एक आत्मा करि सबकौं मानना सो आत्मवाद का अर्थ है। यह कथन सबकौं मानना सो आत्मवाद का अर्थ है। यह कथन मिथ्या एकांत की अपेक्षा है। शुद्धद्रव्यार्थिक नय से सदाशिव अर्थात् सदा मुक्त उस शक्तिरूप परमात्मा को नमस्कार हो । यह कथन सम्यक एकांत की अपेक्षा है।