असिद्धत्व
अनादि कर्मबद्ध आत्मा के सामान्यतः सभी कर्मों के उदय से असिद्ध पर्याय होती है। सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान तक आठों कर्मों के उदय से, उपशान्त कषाय व क्षीणकषाय अवस्था में मोहनीय कर्म के सिवाय सात कर्मों के उदय से तथा सयोगी व अयोगी अवस्था में चार अघातिया कर्मों के उदय से असिद्धत्व-भाव होता है अतः असिद्धत्व – भाव असमस्त रूप से अथवा समस्त रूप से आठों कर्मों के उदय से होता है।