असत्य
सत् शब्द प्रशंसावाची है जो सत् नहीं है वह असत् है। अस् का अर्थ अप्रशस्त है ऋत का अर्थ सत्य है जो ऋत नहीं है व अमृत है जिससे प्राणियों को पीड़ा होती है उसे अप्रशस्त कहते हैं भले ही वह चाहे विद्यमान पदार्थ को विषय करता हो या चाहे अविद्यमान पदार्थ को विषय करता हो । यह पहले ही कहा है कि शेष व्रत अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए हैं इसलिए जिससे हिंसा हो वह वचन असत्य है ऐसा निश्चय करना चाहिए। जो अपने और दूसरों को कष्ट पहुंचाने वाला हो वह वचन जैसा देखा तैसा बतानेवाला होने पर भी असत्य है। मर्मच्छेदी पौरुषवचन, उद्वेगकारी कटुवचन, वैरोत्पादक, कलहकारी, भयोत्पादक, तथा अवज्ञाकारी वचन इस प्रकार के अप्रिय वचन हैं। और हास्य, भीति, लोभ, क्रोध, द्वेष इत्यादि कारणों से बोले जाने वाले वचन सब असत्य भाषण है। असत्य वचन के चार भेद हैं । अस्तित्वरूप पदार्थ का निषेध करना, यह सत्प्रतिषेध रूप कहना। जो नहीं है उसको कहना यह अभूतोद्भावन रूप असत्य वचन का दूसरा भेद है जैसे देवों की अकाल मृत्यु बताना । एक जाति के सत्वपदार्थ को अन्य जाति का सत्वपदार्थ कहना यह अनालोच्य रूप असत्य वचन है जैसे यह बेल है उसका विचार न कर यहाँ घोड़ा है ऐसा कहना। यह कहना विपरीत सत् पदार्थ का प्रतिपादन करने से असत्य है। निद्य वचन बोलना, अप्रिय वचन बोलना, पाप युक्त वचन बोलना वह सब असूनृत रूप चौथे प्रकार का असत्य वचन है ।