अव्यक्त
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मैंने इसके (आगमबाल वा चारित्रबाल मुनि के) पास सम्पूर्ण अपराधों की आलोचना की है। मन, वचन, काय से और कृत, कारित, अनुमोदना से किए हुए अपराधों की आलोचना की है ऐसे जो समझता है उसकी यह आलोचना करना नौवें अव्यक्त दोष दृष्ट है।
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