अविनाभाव
जिसके बिना जिसकी सिद्धि न हो उसको अविनाभाव सम्बन्ध कहते हैं अर्थात् जहाँ-जहाँ साधन हो वहाँ-वहाँ साध्य का होना और जहाँ-जहाँ साध्य नहीं हो वहाँ-वहाँ साधन के भी न होने को अविनाभाव सम्बन्ध कहते हैं। जैसे- जहाँ-जहाँ धूम है वहाँ-वहाँ अग्नि है और जहाँ-जहाँ अग्नि नहीं है वहाँ-वहाँ धूम भी नहीं है। अविनाभाव सम्बन्ध दो प्रकार का है— सहभाव और क्रमभाव । साथ में रहने वाले में तथा व्याप्य–व्यापक पदार्थों में सहभाव नियम नाम का अविनाभाव होता है। जैसे- द्रव्य व गुण में, पूर्व और उत्तर पर्याय में या कार्य और कारण में क्रमभावी नियम होता है। जैसे- मेघ और वर्षा में ।