अप्रशस्तोपशम
अप्रशस्त उपशमना के द्वारा जो कर्म प्रदेश उपशान्त होता है वह अपकर्षण के लिए भी शक्य है, तथा अन्य प्रकृति में संक्रमण कराने के लिए भी शक्य है वह केवल उदयावली में प्रविष्ट करने के लिए शक्य नहीं है। अनन्तानुबन्धी की चौकड़ी और दर्शनमोह का त्रिक इन सात प्रकृति का अभाव है लक्षण जाका अप्रशस्त उपशम होने से जैसे कतकफल आदि से मल कद्रम नीचे बैठने कर जल स्वच्छ हो है तैसे जो तत्त्वार्थ श्रद्धान उपजै सो यहु उपशम नाम सम्यक्त्व है।