अप्रमत्त संयत
जो साधु व्यक्त और अव्यक्त रूप समस्त प्रकार के प्रमाद से रहित हैं और रत्नत्रय से युक्त होकर निरंतर आत्म-ध्यान में लीन रहते हैं वे अप्रमत्त- संयत कहलाते हैं। अप्रमत्त- संयत के दो भेद हैं— स्वस्थान-अप्रमत्त और सातिशय-अप्रमत्त । जो साधु उपशम या क्षपक श्रेणी चढ़ने के सम्मुख हैं वे सातिशय-अप्रमत्त संयत कहलाते हैं, शेष साधु स्वस्थान–अप्रमत्त- संयत कहलाते हैं ।