अपरिणामी
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‘यह धर्मास्तिकाय है’ ऐसा विकल्प जब ज्ञेय तत्त्व के विचारकाल में करता है उस समय वह शुद्धात्मा का स्वरूप भूल जाता है (क्योंकि उपयोग में एक समय में एक ही विकल्प रह सकता है) इस विकल्प के किए जाने पर मैं धर्मास्तिकाय हूँ’ ऐसा उपचार से घटित होता है यह भावार्थ है ।
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