अपकर्षण
कर्मों की स्थिति और अनुभाग का घट जाना अपकर्षण कहलाता है। अर्थात् कर्मों की स्थिति व अनुभाग जो पहले बांघी थी उसे अपने परिणामों के द्वारा घटा देना। प्रसंग को उपकर्षसमा कहते हैं। जैसे कि लोष्ठ निश्चय क्रिया वाला और अविभु देखा गया है अतः (इस दृष्टान्त द्वारा साध्य) आत्मा भी क्रियावान और अविभु होने चाहिए। जो ऐसा नहीं है तो विशेषता दिखानी चाहिए। विद्यमान हो रहे धर्म का पक्ष में से अलग कर देना अपकर्ष है। क्रियावान जीव के अभाव को दृष्टान्त से भले प्रकार प्रसंग कराता हुआ कह रहा अव्यापक देखा गया है उसी के समान आत्मा भी सर्वदा असर्वगत हो जाओ अथवा विपरीत मानने पर कोई विशेषता को करने वाला कारण बताना चाहिए। जिसने कि ढेले का एक धर्म (क्रियावानपना) तो आत्मा में मिलता रहे और दूसरा धर्म (असर्वगतपना) आत्मा में न ठहर सके ।