अनुमानित
हे प्रभु, आप मेरा समर्थ कितना है, यह तो जानते ही हैं। मेरी उदराग्नि अतिशय दुर्बल है मेरे अंग के अवयव कृश है, इसलिए मैं उत्कृष्ट तप करने में असमर्थ हूँ, मेरा शरीर हमेशा रोगी रहता है। यदि मेरे ऊपर आप अनुग्रह करेंगे अर्थात् मेरे को आप यदि थोड़ा सा प्रायश्चित्त देंगे तो मैं अपने सम्पूर्ण अतिचारों का कथन करूँगा और आपकी कृपा से शुद्धि युक्त होकर मैं अपराधों से मुक्त होऊँगा । इस प्रकार गुरु मेरे को थोड़ा प्रायश्चित्त देकर मेरे ऊपर अनुग्रह करेंगे, ऐसा अनुमान करके माया भाव से जो मुनि आलोचना करता है, वह अनुमानित नामक आलोचना का दूसरा दोष है।