अनुप्रेक्षा
1. संसार, शरीर और भोग सामग्री के स्वभाव का बार-बार चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म – ये बारह अनुप्रेक्षाएं हैं। यही बारह भावना भी कहलाती हैं। 2. जाने हुए अर्थ का मन में अभ्यास करना अनुप्रेक्षा नाम का स्वाध्याय है। –