अनुपचरित नय
संश्लेष सहित वस्तु के विषय करने वाला अनुपचरित असद्भूत नय कहलाता है। जीव के औदायिक आदि चार भाव अनुपचारित असद्भूत व्यवहार नय से कर्म कटते हैं। अनुपचरित असद्भूतव्यवहारनय से यह जीव मूर्त है अनुपचरित असद्भूतव्यवहारनय से जीव द्रव्यकर्म नोकर्म से रहित है, देह से अभिन्न है, अनुपचरित असद्भूतव्यवहारनय से यथासंभव द्रव्यप्राणों के द्वारा जीता है, जीवेगा और पहले जीता था इसकी आत्मा जीव कहलाता है। आत्मा निकटवर्ती अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से द्रव्य कर्मों का कर्त्ता और उसके फलस्वरूप सुख दुख का भोक्ता है तथा शरीर का भी कर्त्ता है, अनुपचरित सद्भूतव्यवहार है। निरुपाधि गुण और गुणी में भेदकरने वाला अनुपचरित सद्भूतव्यवहारनय है जैसे केवलज्ञानादि जीव के गुण हैं। जीव का लक्षण कहते समय केवलज्ञान और केवलदर्शन के प्रति शुद्धसद्भूत नय से वाच्य अनुपचरित सद्भूतव्यवहार है। सद्भूत द्रव्य में आस्तिक्य पूर्वक यथार्थ प्रतीति का होना यही इस नय का फल है क्योंकि इस नय से बिना किसी परिश्रम से क्षणिकादि मतों में प्रेक्षा हो जाती है।