अनाहारक
विग्रहगति को प्राप्त जीव मिथ्यात्व सासादन और अविरत सम्यग्दृष्टि तथा समुद्घात कृत केवली इन चार गुणस्थानों में रहने वाले जीव और अयोग केवली तथा सिद्ध अनाहारक होते हैं। ये जीव उपपाद क्षेत्र के प्रति जब ऋजुगति में रहते हैं तब आहारक होते हैं बाकी के तीन समयों में अनाहारक होता है। उपभोग शरीर के योग्य पुद्गलों का ग्रहण आहारक, उसके विपरीत अनाहारक ।