अनन्तानुबंधीकषाय
1. अनन्त भवों को बाँधना ही जिसका स्वभाव है वह अनन्तानुबंधी कषाय है। 2. अनन्त संसार का कारणभूत होने से मिथ्यात्व को अनन्त कहा गया है। जो अनन्त अर्थात् मिथ्यात्व को बाँधती है उसे अनन्तानु- बंधी कहते हैं। 3. जिन क्रोध, मान, माया और लोभ का अनुबन्ध (विपाक या सम्बद्ध ) अनन्त होता है वे अनन्तानु- बंधी क्रोध, मान, माया, लोभ कहलाते हैं। अनन्तानुबंधी कषाय द्विस्वभावी है वह सम्यग्दर्शन और चरित्र इन दोनों का विघात करती है। वासना काल : उदय का अभाव होते हुए भी जिस कषाय का संस्कार जितने काल तक रहे वह उसका वासना काल कहलाता है। जैसे किसी व्यक्ति ने क्रोध किया फिर शान्त हो गया और वह व्यक्ति किसी कार्य में लग गया ऐसी स्थिति में क्रोध का उदय तो नहीं है परन्तु संस्कार या वासना काल रहा आता है क्योंकि जिस व्यक्ति से क्रोध किया है उसके प्रति जब तक क्षमाभाव धारण नहीं करता तब तक उसके वह क्रोध का वासनाकाल जानना चाहिए। संज्वलन का वासना काल अन्तर्मुहूर्त मात्र है, प्रत्याख्यान का एक पक्ष(15 दिन) है, अप्रत्याख्यान का छह मास है और अनन्तानुबंधी का संख्यात, असंख्यात और अनन्तभव पर्यन्त वासना काल है।