अनन्त
1. जिसका अन्त नहीं है उसे अनन्त कहते हैं। अनन्त संसार का कारण होने से मिथ्यादर्शन को अनन्त माना गया है । 2. एक- एक संख्या के निरन्तर घटाए जाने पर भी जो राशि समाप्त नहीं होती वह नन्त है। अनन्त के ग्यारह भेद हैं— नाम – अनन्त, स्थापना-अनन्त, द्रव्य – अनन्त, शाश्वत- अनन्त, गणना– अनन्त, अप्रदेशिक – अनन्त, एका – अनन्त, उभय – अनन्त, विस्तार- अनन्त, सर्व- अनन्त और भाव–अनन्त । गणना-अनन्त के तीन भेद हैं- परीतानन्त, युक्तानन्त और अनन्तान्त । जो संख्या पाँचों इन्द्रियों का विषय है वह संख्यात है। जो संख्या अवधिज्ञान का विषय है वह असंख्यात है। जो संख्या केवल ज्ञान का विषय है वह अनन्त है। अर्धपुद्गल परिवर्तन काल क्षय सहित होते हुए भी इसलिए अनन्त है क्योंकि छद्मस्थ जीवों के द्वारा उसका अन्त नहीं पाया जाता है। वास्तव में केवल ज्ञान अनन्त है। अनन्त को विषय करने वाला होने से वह अनन्त है। परीतानन्तजघन्य असंख्याताख्यात को तीन बार वर्गित और संवर्गित करके पुनः उस राशि में धर्म, अधर्म द्रव्य और लोकाकाश के प्रदेशों को तथा प्रत्येक शरीर एक जीव के प्रदेश और बादर प्रतिष्ठित जीवों की संख्या को मिला देने से जो राशि आयी उसे भी तीन बार वर्गित-संवर्गित करके पुनः उसमें स्थितिबंधाध्यवसाय स्थान अनुभाव – बंधाध्यवसाय स्थान, मन-वचन-काय रूप योगों के अविभागी प्रतिच्छेद, उत्सर्पिणी ओर अवसर्पिणी के सब समय इन सबको मिला देने पर जघन्य परीतानन्त होता है। जघन्य परीतानन्त के जितनी संख्या है उतनी ही बार जघन्य परीतानन्त की संख्या रखकर परस्पर में गुणा करने से जो प्रमाण होता है वह जघन्य युक्तानन्त कहलाता है। उसमें से एक रूप कम कर देने पर उत्कृष्ट परीतानन्त हो जाता है। जघन्य और उत्कृष्ट परीतानन्त के मध्य में जितने विकल्प हैं उन्हें मध्यम परीतानन्त कहते हैं। जघन्य युक्तानन्त को जघन्य युक्तानन्त से गुणित करने पर जघन्य अनन्तानन्त आता है। उसमें से एक रूप कम कर देने पर उत्कृष्ट युक्तानन्त होता है। जघन्य और उत्कृष्ट के मध्य में जितने भी विकल्प हैं वे सब मध्यम युक्तानन्त हैं। जघन्य अनन्तानन्त को तीन बार वर्गित-संवर्गित करके उसमें सिद्ध राशि, निगोद जीवराशि, वन0 जीव राशि, पुद्गल परमाणु और अलोकाकाश के प्रदेश – इन सबको जोड़ करके पुनः तीन बार वर्गित-संवर्गित करें। अब इसमें धर्म और अधर्मास्तिकाय के अगुरूलघु गुणों को मिलाकर जो राशि उत्पन्न हो उसे भी तीन बार वर्गित संवर्गित करके उसमें केवल ज्ञान और केवलदर्शन के प्रमाण को मिला दें तब उत्कृष्ट अनन्तानन्त का प्रमाण आता है। जघन्य अनन्तानन्त और उत्कृष्ट अनन्तानन्त के मध्य में जितने भी विकल्प हैं उन सभी को मध्यम अनन्तानन्त कहते हैं।