अत्यंतयोग विच्छेद
क्रिया के साथ कहा गया योगकार अत्यंतायोगविच्छेद का कर्त्ता है। सरोज नील ही होता है। क्रिया की संगत जो एवकार है, वह अत्यन्तअयोग्य के विवच्छेद का बोधक है। जैसे नीलम सरोजम् भवत्येव । कमल नील ही होता है। उद्देश्यता अवच्छेदक धर्म का व्यापक जो अभाव है उस अभाव का जो अप्रतियोगी उसको अत्यन्तायोगविच्छेदक कहते हैं। उपरोक्त उदाहरण में उद्देश्यावच्छेदक धर्म सरोजत्व है क्योंकि इसी से अवच्छिन्न कमल को उद्देश्य करके नीलत्व का विधान है। सरोजत्व का व्यापक जो अभाव है वह नील के अभेद का अभाव नहीं हो सकता क्योंकि किसी न किसी सरोज में नील का अभेद भी है । अतः नील के अभेद का अभाव सरोजत्व का व्यापक नहीं है, किन्तु अन्य घट आदिक पदार्थों का ज्ञान सरोजत्व का व्यापक है। उस अभाव की प्रतियोगिता घट आदि में है और अप्रतियोगिता नील के अभेद में है। इस रीति से सरोजत्व का व्यापक जो अत्यन्ताभाव उस अभाव का अप्रतियोगी जो नीला भेद उस अभेद सहित सरोज है ऐसा इस स्थान में अर्थ होता है ।