अतिप्रसंग
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(शंकाकार का कहना है कि ) जब अस्ति नास्ति दोनों में से किसी एक से ही काम चल जायेगा तो फिर दोनों को मानकर होने वाले प्राय प्रयास भर से क्या प्रयोजन । तथा दोनों को मानने से गौरव प्रसंग आता है। अर्थात् एक प्रकार का अतिप्रसंग आता है और वचन विलास मात्र होने से दोनों का मानना उपादेय नहीं है ।
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